अन्य चिकित्सा पद्धतियों का उदय
लगभग 2,400 वर्ष पूर्व भारत पर विदेशी लुटेरे अलक्षेन्द्र (सिकन्दर) Alexander ने आक्रमण किया था तथा भारतीय वीरों से काफी मार खाई थी वापिस चला गया था। फिर उसके सेनापति सेल्युकस ने पुनः कुछ समय पश्चात आक्रमण किया मुंह की खायी। सिकन्दर के साथ उस समय का उनका अतीव विद्वान फिलास्फर अरस्तु (Aristotle) भी साथ था, वह भारतवासियों की विद्धता, ज्ञान, विज्ञान, वीरता से अति प्रभावित हुआ तथा ज्ञान विज्ञान सीखने हेतु भारत में ही रह गया था। आक्रमण के समय पर जब उसने खेतों में रूई (कपास) लगी देखी तो बड़ी हैरानी से सिकन्दर को दिखाई व कहा कि ये भारतवासी भी कमाल के आदमी है हमारे यहां भेड़ो पर ऊन पैदा होती है और इनके यहां पेड़ो पर (तब तक यूरोप में रूई के बारे में ज्ञान तक न था।)
यूनानी पद्धति
अरस्तु को भारतीय मनीषियों ने एक आक्रमणकारी देश का होते हुए भी विशाल हृदय का परिचय देकर अपना ज्ञान विज्ञान सिखाया। अरस्तु ने विशेषतौर पर आयुर्वेद सीखा अपने देश युनान लौटने पर उसने इस महा विद्या का प्रचार प्रसार किया भारत के महर्षि चरक के ग्रन्थ के एक मंत्र ‘‘यस्यदेशस्य यो जन्तु तज्जम तस्य औषधम हितम’’ के अनुसार इन लोगों ने इसका विकास अपने देश काल व ऋतु के अनुरूप किया इसमें अपने
क्षेत्र की जड़ी बूटियों का समावेश किया तथा इसे यूनानी चिकित्सा पद्धति का नाम मिला। यह चिकित्सा पद्धति पूरे यूरोप में फैली और लगभग 2000 वर्ष बाद इसी में से ऐलोपैथी निकली।
ऐलोपैथी
प्राचीन यूरोप में सर्वाधिक साधन सम्पन्न व विकसित देश यूनान था (सिकन्दर का देश) सारे यूरोपवासी वहां से ज्ञान विज्ञान सीखते थे। वहां से यूनानी चिकित्सा यूरोप मे फैली पश्चात कुछ वैज्ञानिकों ने इससे अपने ज्ञान से अलग प्रकार से चिकित्सा यूरोप में शूरू की जो क्वाथ (Decoctions) चूर्ण Powder वटियां Pills पर आधारित थी पश्चात इसमें जड़ी बूटियों के सुरासारों Tincture शर्बत Syrupsआदि-आदि के समावेश वहां की जलवायु के अनुकूल हुए परन्तु कुछ विपरीत चिकित्सा विज्ञानी भी इसी में उदित हुए जिनका मतलब था कि एक भाग में कष्ट होने पर उससे अधिक कष्ट दूसरे भाग में पैदा कर दो तो वह कष्ट खत्म हो जाएगा जैसे सर दर्द होने पर पैर में चोट लगाने या दागने पर सिर दर्द समाप्त होगा पेट में दर्द होने पर रोगी को जोर का थप्पड़ लगाएं तो पेट दर्द आराम होगा वगैरह-वगैरह इसका अर्थ हुआ एक रोग तो समाप्त हुआ या न हुआ पर दूसरा रोग शूरू हो गया व कीटाणु चिकित्सा का समावेश हुआ इस कारण पद्धति का नाम अलगपन्थी माना गया जो कालान्तर में ऐलोपैथिक कहलाया। इसमें वैज्ञानिक अनुसंधान कालान्तर में लगभग 500 वर्ष पूर्व शूरू हुए जिसमें हिपोक्रेटस, लुई पाश्चर, विलियम हार्वे आदि-आदि प्रमुख पाश्चात्य वैज्ञानिक थे। ऐलोपैथिक में संक्रामक रोगों व कीटाणुजनित रोगों की चिकित्सा तथा शल्य जरी का उत्तम विकास हुआ हैं। ऐलोपैथिक के इन सुरासारों में Tr. Anithi, Tr. Anisi, Tr. Cardamom, Tr. Amranth, Tr. Nuxvomica, Tr. Aconite, Tr. Iodine आदि-आदि अर्थात सोया, सौंफ, मेथी, इलायची, कुचला, वत्सनाभ आदि-आदि के सुरासार और अनेक जड़ी बूटियों के चूर्ण आदि प्रयोग किए गए। आज से लगभग 30 वर्ष पूर्व तक अर्थात 20 वीं सदी के नवें दशक तक अधिकतर डाक्टर प्राईवेट व हस्पतालों में इन सुरासारों व पाउडरों के मिक्सचर लिखते थे और कम्पाउंडर इनको बनाकर रोगियों को देते थे यही चिकित्सा सारे विश्व में चलती थी जो कि स्पष्टतः आयुर्वेद का परिवर्तित रूप है प्रयोग किया जाता था।
पश्चात अनेक प्रकार के ऐन्टीबायटिक आ गए और अन्य केमिकल्स की बटियां आ गई तो आसानी के लिए डाक्टर इन्हे लिखने लगे। वास्तव में ऐलोपैथिक चिकित्सा विज्ञान में क्रान्ति 20वीं सदी के चौथे दशक में आई जबकि पैन्सलीन और रेडियम का अविष्कार हुआ तो कीटाणुजनित रोगों के नाश के लिए ये अच्छे साबित हुए और इनके प्रयोग से अनेक रोग ठीक होने लगे और कालान्तर में नए-नए ऐन्टीबायोटिक आते गए और कीटाणुजनित रोगों का मुकाबला करने में ये अधिक सक्षम थे इससे मानवता का बड़ा कल्याण हुआ परन्तु इनमें एक बड़ा दोष यह था कि ये एक रोग को नाश करते थे तो दूसरा रोग अथवा साईडइफेक्ट पैदा करते थे। इस प्रकार अनेक ऐन्टीबायोटिक्स आते गए और विफल होकर फेल होते गए और यह क्रम आज तक चल रहा है सैंकड़ो नए-नए ऐन्टीबायोटिक आए और फेल हुए और नए-नए चल रहे हैं। खैर जो भी कुछ हो ऐलोपैथिक में संक्रामक रोगों का नाश करने में बड़ी महान सहायता मिली है अनेक रोग तो विश्व में समाप्त हो गए हैं जैसे कि पलेग, चेचक आदि। ऐलोपैथिक में शल्य जरी अर्थात सर्जरी का उत्तम विकास हुआ है।
होम्योपैथिक का इतिहास लगभग 200 वर्षों का है डा. हैनी मेन ने सर्वप्रथम इसके परीक्षण किए l जर्मन में इसका पुर्नजन्म हुआ ‘‘विषस्य विषमौषधम’’ इसका मूल मंत्र है जो कि लगभग 2500 वर्ष पूर्व आयुर्वेद में महर्षि कणाद ने प्रतिपादित किया था।
आयुर्वेद व संस्कृत के शब्द सारे विश्व की भाषाओं में ग्रहण किए गए हैं इसका प्रसार भूमार्ग द्वारा भारत से सारे विश्व में हुआ। भारत व्यापार का केन्द्र था। अरब के क्षेत्र जहां से स्वेज नहर निकाली गई है से होकर यूरोप से होता था। इसी प्रकार संस्कृत का प्रसार भी हमारे महा मनीषियों द्वारा इसी मार्ग से सारे विश्व में किया गया।
थोड़ा से उदाहरण देखिए संस्कृत का विश्व पर प्रभाव, शब्द काल व स्थान के साथ अपना उच्चारण बदल लेते है जैसे कि जिस शब्द को हिमाचल में बोला जाता है उसका स्वरूप पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल, कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश, तमिल में कुछ का कुछ हो जाता है इस प्रकार से यही शब्द यूरोप तक जाते-जाते कुछ का कुछ बन जाते हैं और इंग्लिश भाषा में तो संयुक्त अक्षर हैं ही नही जैसे कि ख, घ, ङ, छ, झ, ञ, ठ, ढ़, ण, त, थ, ध, भ, क्ष, ष, त्र, ज्ञ आदि नहीं है तो वहां स्वरूप बिल्कुल बदल जाता है (उदाहरणार्थ)
संस्कृत भाषा |
अरबी फारसी भाषा |
युरोपीय भाषा |
मातृ |
मादर |
Mother मदर |
पितृ |
पिदर |
Father फादर |
भातृ |
ब्रादर |
Brother ब्रदर |
दुहतर |
दुख्तर |
Daughter डौटर, दुहतर |
स्वस्त्री |
सस्तर |
Sister सिस्टर |
ऊन |
एक |
One वन, ऊन |
द्वय |
दउ |
Two टू, टूव्य |
त्रय |
तरय |
Three थ्री, थ्रय |
अष्ट |
अठ |
Eight अहट, ऐट |
नवम |
नौ |
Nine नाईन |
सप्तअम्बर |
सातवें अम्बर मे (आकाश) सूर्य |
Steptember सितम्बर |
अष्टअम्बर |
आठवें अम्बर मे (आकाश) सूर्य |
October अक्टूबर |
नवम्बर |
नवें अम्बर में सूर्य |
November नवम्बर |
दिसम्बर |
दसवें अम्बर में सूर्य |
December दिसम्बर |
जनवरीश |
गणरईश अर्थात गणेश जी यानि प्रथम महीना |
January जनवरी
|
फ्रबरीश |
फ्रबर देवता के नाम पर दूसरा माह |
Februry फबररी |
मारीच |
अर्थात सूर्य देवता के नाम पर |
March मार्च |
कृष्ण-मास |
|
Crismus क्रिसमस |
देशों के नाम
ITALY इटली |
संस्कृत से बना है जिसका अर्थ है समुद्र किनारे सुन्दर स्थान |
GREECE ग्रीक |
गिरीश का अर्थ है गिरी के आंचल में बसा |
IRAN ईरान |
ईरण’ का अर्थ है रेत पर थोड़ा जल रूका स्थान |
IRAQ ईराक |
आर्यों का अर्थात आर्यों में श्रेष्ठ समेरू पर्वत का स्थान |
ARAB अरब स्थान |
उत्तम घोड़ों का प्रदेश |
AMERICA अमरीका |
अमरीश’ महर्षि के नाम पर |
GERMAN जर्मन |
शर्मन शर्मा जाति के नाम पर |
RUSSIA रूस- रशिया |
ऋषिया संस्कृत शब्द पर |
PERSIA परसिया |
प्रऋषिया अर्थात इसके साथ लगता क्षेत्र |
SIBERIA साइबेरिया |
अर्थात शिवरीय जहां पर गर्मियों में शिविर लगा कर रहते हों। |
शब्द- हजारों हजार मूल शब्द इंग्लिश, जर्मन, फ्रेंच, पोरचुगीज, रशियन, इटैलियन आदि-आदि विदेशी भाषाओं में संस्कृत से लिए गए हैं और भारतीय सभी भाषाएं तो निकली ही संस्कृत से है इन विदेशी भाषाओं में पहले व्याकरण (ग्रामर) का ज्ञान नहीं था जब इन्होंने संस्कृत की नकल की। इसी लिए इन भाषाओं में कितने ही अक्षर साइलैंट हैं और उच्चारण किसी का कुछ किसी का कुछ है। बहुत समय के बाद कुछ विद्वानों ने इस गलती को समझा तक संस्कृत हिन्दी से व्याकरण ले कर इंग्लिश व अन्य भाषाओं में लिया गया।
उदाहरणार्थ: is-अस्ति का रूप,Am- अहं का रूप,Do- डूकृ का रूप,Go- गौ अर्थात गमन करना गौ अर्थात पृथ्वी और गाय अर्थात चलने वाली का रूप Path-पथ, Cow-गाय का रूप, No-नस्थि, Nil-नाइल, You-युयम, Near-नियरे
आयुर्वेद का तीसरी पीढ़ी का स्वरूप मूल रूप लगभग 500 वर्ष पुरानी ऐलापैथी है जो कि यूनानी की बेटी है और यूनानी आयुर्वेद की बेटी है जैसा हमने उपर लिखा है। यह साबित करता है कि आयुर्वेद के अनेकानेक मूल शब्द ऐलोपैथी में लिए गए है जैसे Cardiac-कारडियक शब्द पूर्व काल में सारडियक पढ़ा जाता था तथा स से ह व ह से क का परिवर्तन आम है जैसे सिन्धु से हिन्दु अर्थात यह हारडियक हुआ अर्थात हृदयक।
Heart-हृट हृदय, हृट, Cerebrum-सेरेब्रम अर्थात शिराब्रहमा अर्थात मस्तिष्क या भेजा Meningitis-मैननजायटस अर्थात मनन ज शोथस अर्थात मस्तिष्क या भेजे में शोथस इसी प्रकार शोथ का विकृत शब्द आईटस-Itis इसी तरह उच्चारित हुए जैसे.Appendicitis, Pharyngitis, Laryngitis, Hepatitis, etc. Fever-ज्वर-Jever, Hydro Cephalus-आर्द्रकपालस अर्थात कपाल में जल भरना। Herpis यह शब्द सर्पस से बना अर्थात नागन रोग अर्थात ब्रह्मसूत्र, Fertility अर्थात फलतीइति यानि उपजाऊ या संतानोत्पादक, Nose-नासिका-नासा,Sinusitis-शीतनाश अर्थात शीत के कारण नासारन्ध्र में शोथ।
Entrails-आन्त्रल अर्थात आंतडियां,Drops- Drop-Dropsy-टपकाना, टपक अर्थात ट्रप्स जो कुछ समय पहले ट्रप्स ही था। Muscle अर्थात मस्सल या मांसल Osteomalaciaअर्थात अस्थिमलाशय हड्डी में मल होने के कारण, Anesthesia-अनस्थाई जो अचेतन अवस्था में लेटा हो, Amoebiasis आमांश शोथस, Dental-दन्तुल-दांत-दन्तपंक्ति-दातुनआदि-आदि दन्त से संबंधित। Umbilicalchordअंवल नाल अर्थात अम्बा यानि माता की नाल। Matrix मातृक्ष अर्थात माता से संबंधित। Doctor दुखतार अर्थात दुख दूर करने वाला, Surgeon सर्जन अर्थात शल्य जन, Surgery शल्य जरी I