अर्थात जो हिन्दमहासागर के उत्तर में और हिमालय के दक्षिण में स्थित है यह भारत वर्ष है और हिन्दु इसकी संतान है। इस देश के ऋषि मुनियों से शिक्षा प्राप्त करने के लिए पूरे विश्व से विद्यार्थी आते थे और अपने आप को शिक्षा पाकर धन्य-धन्य समझते थे।
हमारे ऋषि मुनियों ने भूमि के मार्ग व जल मार्ग से पूरे विश्व का भ्रमण ज्ञान प्रदान करने के लिए किया और किसी को भी अपना गुलाम नहीं बनाया न कहीं अपना राज्य स्थापित किया सभी सुखी हों यही स्वप्न लेकर विश्व को ज्ञान दिया। अरब देश व अफ्रीका के मध्य में जहां से स्वेज नहर अंग्रेजों ने निकाली है ताकि जहाजों को पूरे अफ्रीका का चक्कर न काटना पड़े इस भूमि मार्ग से हमारे ऋषि अफ्रीका के विभिन्न देशों विशेषकर मिस्र में जाते थे मिस्र की संस्कृति में भारतीय समावेश अत्याधिक मात्रा मे है वहां के पिरामिडों का निर्माण भारतीय भवन निर्माण अभियन्ताओं द्वारा किया गया है इसी लिए इसे मिस्र अर्थात मिश्रित संस्कृति का देश कहा गया ऐसा इतिहासकार बताते है और इरान, इराक टर्की, रूमानिया व रूस आदि से होकर पूरे यूरोप में जाते थे और सब प्रकार से वहां के लोगों को ज्ञान-विज्ञान व आयुर्वेद की शिक्षा देते थे जो आज भी परिवर्तन के साथ अनेकानेक देशों में परिलक्षित होता है और हमारी भाषा संस्कृत पूरे विश्व की भाषाओं की जननी है ऐसा विश्व के इतिहासकार मानते हैं जो कि हमारे ऋषियों ने उनके देश में जाकर सिखाई। नई खोजों से सिद्ध हो रहा है दक्षिण अमरीका में भगवान विष्णु व शिव तथा सूर्य के मन्दिर पाए गए हैं जो हजारों वर्ष पुराने हैं। आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैण्ड में भी भारतीय संस्कृति का प्रभाव उनके विभिन्न आयामों जैसे कि मन्दिर व संस्कृति में पाया गया है।
जम्बूद्वीप अर्थात भारत, नेपाल, भूटान, ब्रह्मदेश, लंका, जावा, सुमात्रा, कम्पूचिया (कम्बोडिया), थाईदेश (थाईलैण्ड), जापान, चीन, त्रिविष्टप (तिब्बत), गांधार कंधार-(अफगास्तिान) ईरण (ईरान), आर्यक (ईराक), अरबस्थान (अरब) और मिश्रित देश (मिश्र) ऋषिया या रूसिया (रूस) प्रऋषिया (परसिया) आदि देशों में आज भी घरों में स्वयं आयुर्वैदिक चिकित्सा की जाती है देखिए उदहारण रोगों के निवारण एवं बचाव हेतु औषधियां जो दैनिक प्रयोग में लाई जाती है। जीरा, धनिया, काली मिर्च, सौंफ, अजवायन, सोया, मेथी, पोदीना, इलाइची,सौठ, पीपल, हल्दी, हींग, राई, लवंग, तुलसी, जायफल, जावित्री, तेजपात आदि सैंकड़ो औषधियों का प्रयोग हम लोग दैनिक प्रयोग में व भोजन में करके स्वस्थ रहते हैं। याद रखिए ये औषधियां मसाले के रूप में आयुर्वेद द्वारा इनके गुणों पर सैंकड़ो वर्षों तक शोध करने के बाद रोगों से रक्षा हेतु हमारे आयुर्वेद के ऋषियों द्वारा प्रचारित की गई औषधियां है, कुछ पाचक है कुछ रूचिकारक कुछ वात नाशकर्ता कोई पित्तनाशक तो कोई कफनाशक तो कोई शूल नाशक, स्तम्भक, रूचिवर्धक, रक्तशोधक आदि-आदि, हल्दी तो कोई मसाला नहीं है केवल औषधी है जिसे कि हमारे ऋषियों ने भोजन में लगा दिया और जो कि केवल भारतीय उप महा द्वीप में ही प्रयोग की जाती है यूरोप में नहीं और इसी कारण भारत में रक्तविकार मोटापा और संधिवात तथा कैंसर आदि रोग कम होते हैं। यूरोप में सोराइसिस नामक रोग भारी मात्रा में लगभग 30 प्रतिशत लोगों में पाया जाता है। इस पर हमने काफी सोच-विचार, पठन-पाठन किया व इन्टरनैट पर देखा तो यह समझ में आया कि हल्दी खाने के कारण हमारा रक्त दैनिक साफ होता रहता है और हमे रोग कम होते हैं।
हल्दी, नीम, तुलसी, गौमूत्र, गौमय, गिलोय, योगा आदि-आदि अनेक औषधियों के पेटेन्ट का प्रयास पाश्चात्य लोगों ने किया और इनके सम्पूर्ण नहींतो किसी -किसी भाग का पेटेन्ट लेने में ये लोग सफल रहे हैं जबकि इसका पूरी शक्ति से भारत सरकार ने अपने विद्वानों को लगाकर किया। उपरोक्त सब बूटियां कैंसर में भी हितकारी है। देखिए हमारे ऋषियों की महानता जिन्होने सम्पूर्ण जीवन मानवता के कल्याण के लिए लगाया और पूरे विश्व में घूम-घूम कर प्रचार किया और कुछ भी न लिया और ये विदेशी हर चीज का पेटेन्ट लेने में लगे है।
इनके अतिरिक्त सैंकड़ो औषधियों व हजारों प्रकार की जड़ी बूटियों का प्रयोग आयुर्वेदज्ञों ने मानव के कल्याण हेतु घर-घर पहुंचाया लिखने की आवश्यकता नही है। प्रायः हर घर में प्रयोग की जाती है व लाभ उठाया जाता है।
प्राणी मात्र के कल्याण हेतु मानवों ही नहीं पशु-पक्षियों व पौधों की भी चिकित्सा का विज्ञान निःशुल्क सारे संसार में भ्रमणकर प्रचारित किया छुपाकर नहीं रखा न ही स्वार्थ पूर्ति हेतु Patent right लिया।
सर्वे भवन्ति सुखनि सर्वे सन्तु निरामया।
विषयान्तर (विश्व में भारतीय विज्ञान)
शून्य, अंकमाला, अंक गणित, दशमलव प्रणाली, ब्रह्माण्ड में गृह नक्षत्रों की चाल सूर्य व चन्द्रग्रहण आदि सूक्ष्म कालगणना, चक्र (पहिया wheel) आदि-आदि का अविष्कार भारत द्वारा प्रतिपादित है इसका Patent Right या रायल्टी मांगी जाए तो खरबों, नीलों डॉलर भी कम होगा। शक्तिशाली जीवनीय गुणों से युक्त फलों व सब्जियों और वनस्पतियों के गुणों की शोध कर उन्हे दैनिक जीवन के प्रयोग में उतारा और इसे पूरे विश्व में फैलाया और बिमारी से बचने के उपाय बताए और सूखे फलों को म़ेवों के रूप में प्रयोग कराया आयुर्वेद ने केवल प्रयोग ही नही कराया उन्हों धर्म के साथ जोड़ कर जीवन में उतारा जन्म का समय हो तो मेवा, नामकरण, संस्कार, पूजा-पाठ, हवन, यज्ञ उत्सव विवाह अर्थात हर संस्कार के साथ सम्मिलित किया, मेवों के लड्डु सर्दियों शक्ति संचय का सर्वोत्तम साधन। पाश्चात्य जगत तो अभी कुछ वर्षों से ही इस बात को जान पाया है।
बीमार होने के बाद स्वयं घरेलु चिकित्सा करने के लिए हजारों जड़ी बूटियों का ज्ञान संसार को दिया जो आज भी पूरे विश्व में प्रयोग की जाती हैं W.H.O. के सर्वेक्षण के अनुसार विश्व में रोगों की चिकित्सा के लिए 80 प्रतिशत लोग स्थानीय औषधियों जड़ी बूटियों का प्रयोग करते हैं यह कहना गलत न होगा कि यह सब भारत के ऋषियों की देन है भारत के ऋषि मनीषी विश्व के कल्याण के लिए पूर्व काल में हजारों वर्षों तक पूरे विश्व में पैदल अथवा घोड़े, ऊंट या इनकी गाडियो में घूम-घूम कर ज्ञान-विज्ञान और आयुर्वेद का प्रचार प्रसार कर मानवता का कल्याण करते रहे हैं इसके सैंकड़ो उदाहरण से इतिहास भरा पड़ा है। स्वस्थ रहने की विभिन्न विधियां और ज्ञान हमारे ऋषियों ने बताया।
मिष्ठान- मिठाईयों का अविष्कार किया आयुर्वेद ने जो स्वास्थ्यवर्धक शक्तिशाली है ही मिठाई ठीक प्रकार से सही बनाई जावे तो उत्तम शक्तिवर्धक है यथा लड्डू, चना, बेसन में सर्वाधिक प्रोटीन, देसी घी में वसा (फैटस) मीठा (बूरा, चीनी, मिश्री) शक्ति गुलुकोस एनर्जी कैलोरी सबका सर्वोत्तम योग सर्वाधिक शक्ति शाली भोजन इसी प्रकार इमारती व गुलदाना (उड़द की दाल अत्याधिक प्रोटीन शुद्ध देसी घी वमीठा) उत्तम शक्तिवर्धक इसी प्रकार दूध, पनीर व खोए की मिठाईयॉं, शर्त शुद्ध माल से शुद्ध बनाने की है व पाचन शक्ति ठीक होने की जैसे कि लड्डू को विश्व का सर्वोत्तम भोजन माना गया है इसमे चने का प्रोटीन और शुद्ध घी की वसा तथा खांड का शुद्ध मिश्रण इसे संतुलित शक्तिशाली भोजन बनाता है जिसमें प्रोटीन, फैट्स व ग्लूकोज तीनों का उत्तम मिश्रण है इसी प्रकार अन्य मिठाईयों मे भी उत्तम मिश्रण है।
भोजन- हजारों प्रकार के भोजन की पाक विधि आयुर्वेद की ही महान देन है हर कार्य के अनुकूल हर क्षे़त्र, मौसम, व्यक्ति, बड़ा, जवान, बूढ़ा, स्त्री, पुरूष, प्रसूता ,रोगी व स्वस्थ, ठंडा व गर्म देश शुष्क भूमि हो या जांगल प्रदेश या पहाड़ और अधिक वर्षा वाले सीले सब स्थानों के अनुकूल भोजन की महान शोध हजारों वर्षों के अनुभवों द्वारा शोधित आयुर्वेद की देन है जिससे पूरे विश्व के लोग स्वस्थ रहने की कला सीखें हैं और प्रयोग कर रहें है तथा रोगी हो जाने पर रोग मुक्त होने के लिए भोजन द्वारा स्वास्थ्य और जड़ी बूटियों से चिकित्सा करना सीखें हैं और हजारों वर्षों में खरबों नीलों व्यक्तियों ने स्वस्थ रहकर लम्बी उमर पाई है।
शौच या शुद्धि- शरीर को साफ या स्वस्थ रखने की विधियॉं घर पड़ौस व ग्राम को साफ रखने की विधियां आयुर्वेद के ऋषियों ने पूरे विश्व में फैलाई।
भोजन पकाने हेतु बर्तनों का निर्माण व इन्हे शुद्ध करना यानि मांजना वह भी राख से, केवल धोना नहीं। धातु के बर्तनों का प्रयोग (कांच व चीनी मिट्टी के नही), धातु के बर्तनों में बहुत गुण होते है।
व्यायाम योग व आसन- शरीर को स्वस्थ रखने हेतु सैंकड़ो प्रकार के व्यायाम तथा योग आसनों की रचना व इस पर लम्बा शोध जो काल की गति में परिष्कृत है कोई उसे नकार नही सकता। इसके गुणों के बारे में अब सारा विश्व जान रहा है और रोगों से छुटकारा पाने के लिए इनका प्रयोग कर रहा है और अब विश्व योगा दिवस भी पूरे संसार ने मान लिया है तथा सैंकड़ो लोगों व संस्थाओं ने विदेशों में सैंकड़ो योगों का पेटैंट राइट ले लिया है जबकि भारत के ऋषियों ने इसे सारे विश्व को निःशुल्क दिया है और हमारी नकल करने वाले इसका पैसा ले रहे है।
वातावरण की शुद्धि- सबके अर्थात समाज के, संसार के पशु-पक्षियों व वनस्पति के भी कल्याण हेतु हवन यज्ञ की रचना, यज्ञ की आहूति में जड़ी बूटियों की सामग्री डालकर सभी रोग से सुरक्षा किटाणु नाश करके।
अब इसके महत्व को नवविज्ञान ने मान लिया है। घंटा व शंखवादन किटाणु नाशन के लिए पूजा व दैनिक कार्य में लगाया। घंटा या शंख के बजाने से जो तरंगें (Vibration) उत्पन्न होती है उनमें विभिन्न प्रकार के किटाणु वातावरण में से नष्ट होते है अब इसे आधुनिक विज्ञान ने मान्यता दे दी है।
भवन निर्मार्ण- अच्छे स्वास्थ्य के लिए कैसे मकान कैसी सामग्री से निर्मित हो इसको भी आयुर्वेद ने समझाया इनकी सफाई, लिपाई, पुताई में किटाणु नाशक सामान चूना आदि का प्रयोग बताया। हिन्दु वास्तुकला विश्व में सर्वोतम मान ली गई है।