परिवार का संछिप्त इतिहास

संछिप्त इतिहास

हमारा परिवार सन् 1855 में आयुर्वैदिक चिकित्सा में आया पूज्य सकड़ दादा प्रातः स्मरणीय स्वर्गीय राम जी दास जी ने 1855 में चिकित्सा कार्य प्रारम्भ किया था। आपने वाराणसी में आयुर्वेद का अध्ययन किया था। इनके साथ उनके पुत्र प्रातः स्मरणीय स्वनाम धन्य पड़दादा वैद्य झंडु राम जी ने युवा होने पर पढ़ाई पूणर््ा करके चिकित्सा कार्य शुरू किया। इसी कड़ी में तीसरी पीढ़ी में इनके पुत्र प्रातः स्मरणीय स्वनाम धन्य पूज्य पाद दादा श्री राज वैद्य आसाराम जी बिन्दल ने शिक्षा प्राप्त करने के बाद इनके साथ कार्य प्रारम्भ किया एवं अति पारंगत एवं सिद्धहस्त चिकित्सक होने के कारण राज वैद्य नियुक्त किए गए। ये आयुर्वेद के प्रकाण्ड पण्डित होने के साथ-साथ ज्योतिषी व महान त्यागी समाज सेवक तपस्वी, दानी एव ं क्रान्तिकारी थे। और पूरे जिले के नम्बरदार व सरकार द्वारा नियुक्त आनरेरी मैजिस्ट्रेट भी थे। हमारा परिवार प्रारम्भ से ही क्षेत्र के बड़े एवं रईस खानदानों में से था। 1919 की इन्फलूऐंजा की बिमारी जो प्रथम विश्व यु़द्ध के समाप्त होने के बाद सारे विश्व के साथ-साथ भारत में भी बडी भारी मात्रा में गांव-गांव तक फैली थी अपने गांव व जिले में फैलने पर राज वैद्य आसाराम जी बिन्दल और इनके भाईयों, पुत्रों व पिता श्री वैद्य झंडु राम जी बिन्दल ने पूरे क्षे़त्र के समाज की न केवल आ ैषधियों से बल्कि शारीरिक व आर्थिक तौर पर भारी सेवा की तथा 1923 की पलेग की महामारी ने जो कि पूरे देश में फैली थी और लाखों लोग कालक्लवित हो गए थे में भी भारी सेवा की उस काल में प्लेग की कोई विशेष चिकित्सा उपलब्ध नहीं थी जो भी चिकित्सा सम्भव थी यथा शक्ति मुफ्त तथा कम मूल्य पर प्रदान की गई रोग से बचने के लिए सुरक्षात्मक(च्तवचीलसंबजपब डमकपबपदमद्धदवा के रूप में टिंक्चर आयोडीन को पांच-सात ब ू ंद पानी मे ं मिला कर पिया जाता था

और पिस्सुओ ं से बचाव हेतु पानी मिलाकर शरीर के खुले अ ंगो मे ं लगाया भी जाता था ऐसे कठिन काल मे ं हर गांव मे ं भारी मात्रा में लोगों की मृत्यु हुई इनके दाह संस्कार की बड़ी कठिनाई थी कोई साथ लगने को राजी नहीं होता था क्योंकि रोग लगने का भारी खतरा था अनेक अमीर लोग अपने गांव शहर छोड़ कर पहाड़ो में चले गए थे हमारे परिवार को भी लोग जाने के लिए कह रहे थे पर पूज्य पाद दादा व पड़ दादा श्री ने ऐसा करने से मना कर दिया कि हमन े अपन े समाज की सेवा करनी है । इस महा कठिन समय में पूरे परिवार के युवा सदस्यों सहित अपने दोस्तो मित्रों का संगठन बना कर दाह संस्कार करने व खर्चे का भी प्रबन्ध किया और इस काल में भारी संख्या में चूहों की प्लेग से मृत्यु हुई जिनके कारण से प्लेग फैल रहा था इनके भी दबाने अथवा जलान े की भारी समस्या थी ये प्लेग के किटाणुओं व पिस्सुओ से भरपूर थे इनके भी वैज्ञानिक विधि से ठिकाने लगाने की व्यवस्था उपरोक्त हमारे परिवार के संगठन ने की और इस सारे कार्य में बुढ़ापे मंे भी लगे रहने के कारण हमारे पड़ दादा के दो भाई प्लेग से ग्रसिता होकर शहीद हो गए, स्थिती इतनी भयानक थी कि एक शव को लेकर जाते थे और कहते थे कि दूसरा मरने वाला है वापसी में इसे ले जाना पड़ेगा इस प्रकार दिन में अनेक शवों का दाह संस्कार करना पड़ता था। इसके पश्चात दादा श्री राज वैद्य आसाराम जी बिन्दल के साथ पूज्य पाद पिता श्री वैद्य बाल मुकन्द जी बिन्दल ताया श्री वैद्य हुकम चन्द जी बिन्दल एवं चाचा श्री वैद्य केशव राम जी बिन्दल व वैद्य रूलिया राम जी बिन्दल भी चिकित्सा कार्य में संलग्न हो गए। इस प्रकार 5 वैद्यों ने चिकित्सा कार्य चलाए रखा। अभी प्लेग को समाप्त हुए कुछ वर्ष ही हुए थे और महात्मां गाॅंधी जी ने स्वतन्त्रता आन्दोलन प्रारम्भ कर दिया और असहयोग तथा स्वदेशी आन्दोलन चलाया खादी को भारी प्रोत्साहन दिया। 1926 में भयानक अकाल पड़ा और देश में त्राहि-त्राहि हो गई सूखे से पैदावार न हुई और हरियाली दूर-दूर तक नजर नहीं आती थी अन्न की भारी कमी थी कुछ क्षेत्रों में लोगों ने बाढ़ की सूखी लकडि ़यो ं व घास को पीसकर रोटियां बना कर खाईं और एक कहावत र्नइ बनी कि 1926 का साल बड़ा करडा़, सूखी बाढ़ दिया दरड़ा, खाकर पेट हुआ सरड़ा। अंग्रेज नहीं चाहते थे कि भारतीय रोग स्वस्थ रहंे और हमारे खिलाफ महात्मां गाॅंधी के साथ मिलकर आन्दोलन करें। इस भयानक कठिन समय में भी हमारे परिवार के उपरोक्त सदस्यों ने दिन रात समाज की सेवा की और अनाज लेने के लिए आने वाले प्रत्येक परिवार के मुखिया को एक-एक मन अनाज देने का कार्य प्रारम्भ किया जो कि इतना बढ़ गया कि सुबह से शाम तक लाईन खत्म ही नही होती थी और दो-तीन मास के बाद अपनी आर्थिक स्थिती खराब हो गई और पिता श्री ने दादा श्री को यह काम बन्द करने के लिए कहा कि अब तो धन समाप्त है काम नहीं चलेगा तो भी दादा श्री ने परिवार के जेवरात बेच कर भी लोगों की सहायता की और अनाज के जमाखोर दुष्ट लोग अनाज का दाम बढ़ाते जा रहे थे आ ैर सरकार र्कोइ नियन्त्रण न कर रही थी न करना चाहती थी खैर ईश्वर कृपा से यह समय भी बीत गया और सब कुछ सामान्य हो गया इस काल में एक और बड़ी घटना हुई अकाल पड़ने से पूर्व जिले का मालयाना एकत्रित करने के लिए ठेका हुआ जो कि दादा श्री नम्बरदार जी के हक मे ं एक लाख रूपये मे ं छूटा और 50 हजार रूपये अग्रिम जमा कराए गए और बाद में अकाल पड़ गया और सरकार ने मजबूरन मालियाना माफ कर दिया तो पूज्य दादा श्री राज वैद्य आसाराम जी बिन्दल ने सरकार से अपने 50000 रूपये वापिस मांगे परन्तु सरकार ने वापिस करने के लिए शर्तें रख दी कि आप क्रान्तिकारी काम छोड़ दें और लोगों को अनाज देना बन्द करें तो हम पैसे वापिस करेंगे परन्तु दादा जी ने ऐसा करने से मना कर दिया तो अंग्रेज सरकार ने रूपया वापिस नहीं किया आ ैर कहा कि आपकी आनरेरी मैजिस्ट्रेट का पद और नम्बरदारी का पद भी वापिस ले लिया जाएगा तो दादा श्री न े कहा कि आप शीघ्र ही इस मुसीबत को वापिस ले लो मैं आपका कार्य मुफ्त कर रहा हूॅं तो आपका क्या अहसान है। इसके पश्चात रूपया वापिस लेने के लिए पंजाब हाईकोर्ट लाहौर में दावा करना पड़ा तब रूपया तीन साल बाद वापिस हुआ और इस मुकदमें में भारी धन राशि व शक्ति खर्च हुई, इस कारण आर्थि क स्थिती आ ैर भी कमजोर हो गई और उपर से सरकार तंग कर रही थी। आज के युवकों को यह बता द ेना आवश्यक है कि उस काल मे ं रूपय े की क्या कीमत थी सोने का भाव 18 रूपये तोला अर्थात 15 रूपये 10 ग्राम था अब आप अन्दाजा लगा सकते हैं कि 50 हजार रूपये की आज क्या कीमत होगी। किन्तु ईश्वर कृपा और पूर्वजों के आशीर्वा द स े जैसे-तैसे काम चलता रहा और यह कठिन समय बीत गया।

प्रातः स्मरणीय स्वनाम धन्य राज वैद्य आसाराम जी बिन्दल नाड़ी निदान के धुरंधर विद्वान जड़ी बूटियों के पण्डित, यकृत व उदर रोग, संधिवात, गठिया, कठिन रक्त विकार (चम्बल, सोराइसिस, मुगली फोड़ा, गैंग्रीन आदि) बवासीर, पुरूषो व स्त्रियों के रोग, बांझपन आदि पत्थरियां, रसौलियां आदि-आदि रोगों के विशेषज्ञ थे। गरीब रोगियों की चिकित्सा मुफ्त अथवा कम मूल्य में करते थे आपकी विद्वता के कारण आपको राज वैद्य नियुक्त किया गया था। आप महान् समाज सेवक महान् दानी व क्रान्ति कारी थे अनेक बार आपने स्वतन्त्रता संग्राम में जेलें काटीं, अनेक बार तो पिता पुत्र यानि साथ मे ं वैद्य बालमुकन्द जी न े भी साथ म े ं जेलें काटीं।यह सिलसिला 1921 से लेकर 1940 तक चलता रहा। समय-समय पर स्वतन्त्रता संग्राम में भाग लेने के कारण अनेक बार पूज्य पाद दादा श्री राज वैद्य आसाराम जी बिन्दल एंव पूज्य पाद पिता श्री वैद्य बालमुकन्द जी बिन्दल ने इकट्ठे जेलें काटी यहा ं तक कि एक बार तो यहां से हजार किलोमीटर दूर मुलतान जेल (अब पाकिस्तान) में भी भेजा गया। पीछे से घर व्यापार का कार्य ताया जी व चाचा जी देखते थे। पूज्य पाद ताऊ श्री वैद्य हुक्म चन्द जी बिन्दल व वैद्य बालमुकन्द जी बिन्दल जड़ी बूटियों के प्रकाण्ड पण्डित थे इसकी खेाज मे ं जंगलो में जाते रहते थे और हिमालय की जड़ी ब ूटियों की खोज व शोध के लिए पहाड़ो में भी जाते रहते थे। आप दोनों जिगर, तिल्ली, पेट के रोग, बवासीर, भगन्दर, सन्धिवात, गठिया, कठिन रक्त विकारों पुरूषो ं व स्त्रियों के रोग , दमा, पत्थरी, रसौलियों आदि की चिकित्सा के लिये 100/100 मील से रोगी आप से दवा लेने आते थे। गरीब व असहाय रोगियों की चिकित्सा मुफ्त या अति कम मूल्य पर करते थे। दादा श्री ने अनेक मन्दिर, धर्मशालाये ं, पाठशाला, तालाब व कुंए आदि बनाए थे उनका रख रखाव व संचालन आप दोनों करते थे और अनेक नए बनवाए। वैद्य बालमुकन्द जी बिन्दल ने सोलन में भी आश्रम, स्कूल, मन्दिर, धर्मशाला, बावड़ी आदि बनवाए और आगे इनके पुत्र भी बनवा रहें और संचालन भी कर रहे हैं। अनेक बच्चों को पढ़ाई, इलाज आदि में सहयोग करते हैं व गरीब कन्याओं की शादी आदि में भी सहयोग करते हैं और प्रदेश, जिला व नगर में होने वाले सामाजिक, धार्मिक कार्यक्रमों में सभी प्रकार से पूर्ण सहयोग देते हैं।

आपकी चिकित्सा कुशलता के कारण जनता आपको लुकमान जी (हकीम लुकमान के नाम पर) कहती थी। हमारी दुकान पर सोलन में पिता श्री वैद्य बालमुकन्द जी के पास 1935 से 1945 तक गर्मी के मौसम में पूज्यपाद वि¬व प्रसिद्ध हकीम अजमल खां साहिब दिन के समय 2-3 घण्टे बैठ कर चिकित्सा कार्य करते थे। हकीम अजमल खां साहिब बीसवीं शताब्दी के सबसे बड़े हकीम माने जाते थे तथा आप महान राष्ट्र भक्त व स्वतंत्रता सेनानी थे गांधी जी के खास करीबी थे। आप जामिया मिलिया यूनीवर्सि टी तिब्बिया काॅलेज(युनानी) दिल्ली, हमदर्द दवा खाना, हिन्दुस्तानी दवा खाना व अनेक युनानी दवा कम्पनियों के संस्थापक व संरक्षक थे आप हिकमत की प्रसिद्ध पुस्तक हाजिक के लेखक हैं। आप सोलन में नवाबों के साथ गर्मी के मौसम मे ं आत े थे। सोलन हिल स्ट ेशन ह ैं जहा ं पर गर्मियो ं मे ं रहन े के लिए अमीर लोग आते थे और 3-4-5 माह रहते थे और तब सोलन की चहल-पहल गर्मी में खास होती थी अब भी गर्मी में सैलानी आते हैं पर 5-10 दिन होटलों में ठहरते हैं। हकीम अजमल खां साहिब नवाब साहब की कोठी पर खास लोगों की चिकित्सा भी करते थे पर आम लोग नहीं मिल सकते थे और नुस्खो ं की दवाईयां भी पूरी नहीं मिल पाती थी तो एक बार हकीम साहब ने पिता श्री को कहा कि अरे भई बालमुकन्द मेरी लिखी दवाईयां भी मगां लिया कर ताकि लोगों को अम्बाला से न मंगानी पड़े और यदि तुझे परेशानी न हो तो में दिन में फुर्सत के समय 2-3 घण्टे तेरी मतब (क्लीनिक) पर बैठ कर रोगियों का इलाज बिना फीस के कर दिया करूं पिता जी ने स्वीकृति दे दी सोच कर की विश्व प्रसिद्ध हकीम मेरी मतब पर बैठेगा तो मेरी खूब नामदारी भी होगी और बिक्री भी होगी और बहुत कुछ सीखने को भी मिलेगा व ैसे पिता जी व ताऊ जी के हकीम गुरू हकीम ऐनूदीन करनालवी थे इन दस वषों में हमारी दुकान (पिता श्री की मतब) पर खूब चिकित्सा कार्य हुआ दूर-दूर से रोगी आते हकीम अजमल खां साहिब तजवीज करके नुस्खे लिखते पिता जी भी समझते और दवाई देते व समझाते और दवाईयां दिल्ली से मंगात े थे फालत ू समय में हिकमत आयुर्वेद व राष्ट्र की गतिविधियों पर चर्चा होती उस काल में सोलन की आबादी 500से 1500 थी (1935 से 1945 तक) आबादी के हिसाब से ही मरीज होते थे इस प्रकार पिता श्री के ज्ञान में भारी वृद्धि हुई हकीम अजमल खां साहिब ने ही पिता श्री को हकीमें हाजिक उल हुकमा की उपाधि दिलवाई थी इसी कारण हमारी चिकित्सा में युनानी दवाईयों का भी समावेश है। पूज्य पाद वैद्य बालमुकन्द जी बिन्दल के 6 पुत्र हैं। सारे ही उच्च कोटि के चिकित्सक ह ैं। तीन बेटियां तीनों ही चिकित्सा सेवा कार्य करती हैं।