आयुर्वेद के विभाग (Sections of Ayurveda)

आयुर्वेद के विभाग

स्त्री रोग व प्रसूतितन्त्र- स्त्री रोग, गर्भस्थ शिशु व गर्भिणी रोग ।

कुमार भृत्य-            शिशु व बाल रागों की चिकित्सा।

बाजीकरण व रसायन-    पुरूष रोगों की चिकित्सा, शक्ति वर्धन व जरा को रोकने वाली ।

शल्य तन्त्र-             सर्जरी

शालक्य-               आंख, कान, नाक, गला व मस्तिष्क रोगों की चिकित्सा।

काय चिकित्सा -         सब शारीरिक रोगों की चिकित्सा।

अगध तन्त्र-             विष चिकित्सा

ग्रह चिकित्सा, भूत विद्या-   मानसिक रोगों एवं प्रेतों से उत्पन्न रोगों की चिकित्सा।


शल्य चिकित्सा- पुरातन काल में आयुर्वेद की शल्य चिकित्सा चरम सीमा पर थी। भगवान शिव, भगवान धनवन्तरी, अश्वनी कुमार, महर्षि सुश्रुत आदि-आदि बड़े शल्य चिकित्सक थे। महर्षि सुश्रुत बाद के काल में होने वाले महान शल्य जन (सर्जन) थे जिन्हे आधुनिक शल्यजन बड़े मान सम्मान से याद करते है। इनके द्वारा अविष्कृत शल्य विधियां व औजार यऩ्त्र अनुपम थे इन्हे आज भी प्रयोग किया जाता  हैं कई अब तक भी न बन पाए हैं अत्यंत कठिन अविश्वसनीय शल्य क्रियाओं के वर्णन मिलते हैं। कटा सिर जोड़ देना जैसे गणेश जी व दक्ष प्रजापति का कटा सिर जोड़ना, खोपड़ी काटकर मस्तिष्क का ऑपरेशन करना, टूटे दांत लगाना। (पूषा के दांत लगाना) इन्द्र के उखड़े हुए बाजू को पुनः लगाना (इन्द्र का युद्ध में बाजू उखड़ गया था पुनः लगाया गया) गर्भ का प्रत्यारोपण TEST TUBE BABIES गांधारी के 100 पुत्र घड़ों में अर्थात कृत्रिम गर्भाशय बनाकर उत्पन्न कराए गए। प्लास्टिक सर्जरी आम थी मध्य युग में दोषियों को नाक, कान काट देने की सजा दी जाती थी। अतः नाक -कान की प्लास्टिक सर्जरी की आवश्यकता थी, इसके विशेषज्ञ होते थे। कान की प्लास्टिक सर्जरी की केन्द्र कांगड़ा (हि.प्र.) था। यह नाम कानगढ़ा था (कान गढ़ने वालों का गढ़, कान बनाने वालों का गढ़) नाक की प्लास्टिक सर्जरी करने वाले चिकित्सक काफी मात्रा में थे जो कालान्तर में एक जाति नकहेड़े के रूप में चलती रही अब भी पाई जाती है जो विकृत रूप में है।

पतन- लाखों वर्षों की परिष्कृत चिकित्सा पद्धति जिसने युग-युगान्तरो तक मानव की सेवा की, को दुष्ट विदेशी  आततायी लुटेरों ने नष्ट भ्रष्ट किया। अनपढ़ मूर्ख दुष्टों ने धन वैभव तो लूटा साथ ही संस्कृति कला व विज्ञान को भी नष्ट किया यह कहकर कि अगर यह ज्ञान हमारी पुस्तक में है तो इसकी जरूरत नहीं अगर नही है या पुस्तक के विरूद्ध है तो भी इन पुस्तकों की आवश्यकता नही है ज्ञातव्य है कि विश्व प्रसिद्ध नालन्दा विश्वविद्यालय में आयुर्वेद का एक सम्पूर्ण समृद्ध विभाग था जो अत्यन्त समृद्ध प्राचीन काल के ऋषियों मनीषियों द्वारा लिखित ग्रन्थों का संग्रहित महान पुस्तकालय था। दुष्ट लुटेरों द्वारा जला दिया गया, पश्चात निरंतर आक्रमणों ने देश को अस्त-व्यस्त किया व हमारी संस्कृति, मन्दिरो, भवनों, किलो, गुरूकुलों विद्यालयों को नष्ट किया साथ हमारे अन्य सभी विज्ञान कलाओं को भी नष्ट किया तथा राजकीय प्रश्रय समाप्त हो गया इस कारण आयुर्वेद का पतन निरन्तर होते-होते भारी क्षति ग्रस्त हो गया है। अब इस महान विज्ञान के विकास के लिए सरकार व जनता दोनों को अथक प्रयास करने होंगे।